Car को रीपेंट कराना चाहिए या नहीं? फैसला लेने से पहले जान लें इसके नुकसान!

Car Repainting Disadvantages: अगर आप अपनी कार को रीपेंट कराने का विचार कर रहे हैं, तो जाहिर है कि आपको इसके फायदों के बारे में पता होगा. लेकिन, क्या आप कार रीपेंट कराने के नुकसानों के बारे में भी जानते हैं? अगर आपकी कार का पेंट खराब हो गया है या आप अपनी कार को नया लुक देना चाहते हैं, तो रीपेंटिंग करा सकते हैं लेकिन ऐसा कराने के कुछ नुकसान भी होते हैं. चलिए, इनके बारे में बताते हैं.
1. खर्चा: कार को रीपेंट कराने में काफी खर्च आता है. रीपेंटिंग की लागत कार के मॉडल, कलर और रीपेंटिंग की क्वालिटी पर निर्भर करती है. अगर कार कंपनी के अथॉराइज्ड सर्विस सेंटर से रीपेंट कराते हैं, तो खर्चा और बढ़ जाता है. इसमें कम से कम 20-25 हजार रुपये का खर्चा आता है.
2. समय: कार को रीपेंट कराने में काफी समय लगता है. रीपेंटिंग के प्रोसेस में कार को पूरी तरह से साफ करना, पुराने पेंट को हटाना, नया पेंट करना और कार के नए पेंट को सुखाने देना शामिल है. इसमें कई दिन लग सकते हैं. आमतौर पर कार को रीपेंट कराने में 1 से 2 सप्ताह का समय लगता है.
3. रीसेल वैल्यू: कार को रीपेंट कराने से उसकी रीसेल वैल्यू कम हो जाती है. दरअसल, लोग रीपेंटेड कार खरीदने से बचते हैं क्योंकि इससे उन्हें कार की असल स्थिति (एक्सीटेंड हुआ या नहीं आदि) के बारे में सही जानकारी नहीं मिलती. इसीलिए, लोग ऑरिजनल पेंट वाली कार खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं.
4. लॉन्ग लास्टिंग नहीं होता: रीपेंट लॉन्ग लास्टिंग नहीं होता है. यानी, यह ज्यादा लंबा नहीं टिकता है. यह 4-5 सालों में ही फेड होने लगता है. ऐसे में आपको फिर से रीपेंट कराना पड़ सकता है, जिसका मतलब है फिर से बड़ा खर्चा होना. दरअसल, कंपनी द्वारा किए ऑरिजनल पेंट के मुकाबले बाद में कराए गई रीपेंट की क्वालिटी कम अच्छी होती है.