म्यांमार में सेना और विद्रोहियों के बीच लड़ाई हो गई शुरू भारत के लिए बढ़ी चिंता म्यांमार में अस्थिरता भारत के पूर्वोत्तर की सुरक्षा पर पड़ सकता असर

ये हमले नागरिकों की रक्षा और सैन्य तानाशाही को खत्म करने के लिए हैं। इससे भारत-म्यांमार सीमा पर गतिविधियां बढ़ गई हैं। भारत में शरणार्थियों का आना बढ़ सकता है जो चिंता का विषय है पूर्वोत्तर के कुछ गुटों का म्यांमार के गुटों से संबंध होने की आशंका भी है।
 
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Nodpot News म्यांमार में बीते कुछ समय में म्यांमार की सेना और जुंटा विरोधी ताकतों के बीच लड़ाई में तेजी आई है। म्यांमार में बढ़ते संघर्ष का भारत पर भी गहरा असर होने की संभावना है। देश के रणनीतिक पूर्वोत्तर क्षेत्र, खासकर मणिपुर और मिजोरम राज्य में सुरक्षा पर इसका असर पड़ने की बात विशेषज्ञ मान रहे हैं। म्यांमार के विद्रोही समूहों की ओर से शुरू किए गए ऑपरेशन 1027 पर भारत की बारीक निगाह है। तीन ब्रदरहुड एलायंस, जिसमें म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी (एमएनडीएए), अराकान आर्मी और ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (टीएनएलए) शामिल हैं, ने चीन की सीमा से लगे पूर्वोत्तर शान राज्य में ऑपरेशन 1027 लॉन्च किया है।

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जुंटा का विरोध करने वाले गुटों ने हमले बढ़ा दिए हैं।


नाएप्यीडॉ: इन तीनों ग्रुप ने 135 से ज्यादा सैन्य ठिकानों पर कब्जा कर लिया है। बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद जब्त करते हुए चीन के साथ व्यापार मार्गों पर नियंत्रण कर लिया है। जिसमें प्रस्तावित रेल लिंक के लिए चिनश्वेहाव के पास कुनलॉन्ग शहर भी शामिल है। चिन राज्य में चिन नेशनल फ्रंट (सीएनएफ), काचिन राज्य में काचिन क्षेत्र पीपुल्स डिफेंस फोर्स (मोगांग), सागांग क्षेत्र में विभिन्न पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ), राखीन राज्य में अराकान सेना ने हमले किए हैं।

 

जुंटा विरोधी गुटों में प्रमुख है ब्रदरहुड एलायंस।


चिन और काचिन राज्य और सागाइंग क्षेत्र भारत की सीमा पर हैं। सीएनएफ लड़ाके बीते हफ्ते भारत के साथ दो आधिकारिक सीमा पार बिंदुओं में से एक रिहखावदार पर कब्जा करने में शामिल थे। विद्रोही समूहों ने 90 सैन्यकर्मियों को मारने का दावा किया है। जुंटा ने शान, चिन और करेनी राज्यों और सागांग क्षेत्र के कई शहरों में मार्शल लॉ घोषित कर दिया है। इस लड़ाई ने सुरक्षाकर्मियों सहित हजारों म्यांमार नागरिकों को मिजोरम भागने के लिए मजबूर कर दिया है।


भारत  पर  कैसे होगा इस  का  असर?

 

म्यांमार से मिजोरम में हजारों शरणार्थियों के आने के अलावा भारत के उत्तर-पूर्व में सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव फैलने को लेकर चिंताए बढ़ रही हैं। म्यांमार के चिन जातीय समूह का मणिपुर में कुकी के साथ मजबूत संबंध है, और मणिपुर के कई मैतेई उग्रवादी समूहों की म्यांमार के सागांग क्षेत्र में मौजूदगी है। माना जाता है कि उन्हें जुंटा का संरक्षण प्राप्त है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असर मणिपुर की स्थिति पर पड़ सकता है


भारत के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विक्रम मिस्री 15 अक्टूबर को एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए नेपीताव गए, जो म्यांमार के विद्रोही समूहों के साथ राष्ट्रव्यापी युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने की आठवीं वर्षगांठ थी। यहां उन्होंने कहा था कि जातीय संघर्षों को हल करने के लिए समझौते को मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने साथ ही जोड़ा था कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि शांति की ओर यात्रा चुनौतियों से भरी रही है। रास्ते में असफलताएं आई हैं। म्यांमार में उभरते राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए आगे का रास्ता चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। उन्होंने साफ कहा कि इसका असर भारत पर भी हो सकता है।

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