कोरोना ने अनाथ किया, लोन-बिजली बिल का हजारों बकाया, भावुक कर देगी शामली के भाई-बहन की कहानी

हिमांशु मलिक बहुत छोटे हैं। वे अभी 15 साल के हैं। लेकिन उनके जिम्मे बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उन्हें अपने दो भाई-बहन की देखभाल करनी है। उनके भाई-बहन 13 और 14 साल के हैं। हिमांशु को अपने भाई-बहन के लिए मां और पिता दोनों का काम करना पड़ता है।
 
himanshu malik

NODPOT NEWS 15 साल के हिमांशु मलिक कहने को तो अभी नाबालिग हैं लेकिन जिम्मेदारियों ने उन्हें वयस्क बना दिया है। पहले पिता, फिर दादा-दादी और अंत में मां को खोने वाले इस बच्चे के दो छोटे भाई-बहन हैं, जिनके लिए मां-बाप सब यही हैं। कोरोना महामारी की दो लहरों में इन तीन मासूम बच्चों के जीवन की कोमलता ही बह गई। अब वे जीवन की कठिन और क्रूर सच्चाइयों से लड़ रहे हैं और इस कठोर संघर्ष में एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं। सरकार की ओर से मदद भी मिल रही है लेकिन जाहिर है कि वह पर्याप्त नहीं है। हजारों के बिजली का बिल और अन्य बकायों को चुकाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। खुद हिमांशु खेती और भाई-बहनों की जिम्मेदारी में फंसे होने की वजह से स्कूल की पढ़ाई से दूर हो गए हैं। उन्होंने एक सरकारी स्कूल में 12वीं में दाखिला लिया है लेकिन क्लासेज अटेंड करना उनके लिए अब लग्जरी हो गया है।

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12वीं में दाखिला लेकर घर की सारी जिम्मेदारी भी निभा रहे हिमांशु

शामलीः कोरोना की त्रासदी बीतने के तीन साल बाद हिमांशु अब जीवन की कठोर वास्तविकताओं से जूझ रहे हैं। तकरीबन 12 बीघे की खेती होने के बावजूद उन्हें 35 हजार रुपये के गन्ने का बकाया भुगतान करने की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हमारे सहयोगी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने साल 2021 में हिमांशु की दुर्दशा की रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसके तुरंत बाद यूपी सरकार ने उन्हें हर भाई-बहन के हिसाब से हर महीने 4 हजार रुपये का अनुदान देने का वादा किया था, लेकिन पिछले 8 महीनों से पैसा उन तक नहीं पहुंचा है। उनका बिजली का बिल भी पिछले तीन सालों से बकाया है, जो अब 62 हजार रुपये तक बढ़ गया है।


स्कूल में लिया ऐडमिशन लेकिन क्लास करना मुश्किल

 

हिमांशु पढ़ना भी चाहते हैं और इसलिए उन्होंने एक सरकारी स्कूल में 12वीं में दाखिला लिया है लेकिन क्लास में जाकर पढ़ाई करना उनके लिए काफी मुश्किल है। उनके भाई-बहन प्राची और प्रियांशु इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं। वहां उनकी कोई फीस नहीं लगती लेकिन उनके स्कूल आने-जाने के लिए बस का किराया 3 हजार रुपये महीना पड़ता है, जिसे दे पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। हिमांशु बताते हैं, 'प्रशासन मददगार है और बिजली विभाग ने मुझ पर तुरंत बिल जमा करने के लिए दबाव नहीं डाला है, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? बढ़ते बकाया बिलों और अन्य खर्चों से परेशानी बढ़ रही है।"

 

बड़े भाई  की जिम्मेदारी से ज्यादा बोझ


 

हिमांशु का बोझ एक बड़े भाई की भूमिका से कहीं ज्यादा है। वह अब अपने स्कूल जाने वाले बहन और भाई के लिए माता-पिता की भूमिका निभा रहे हैं। नाबालिग होने की वजह से हिमांशु को बैंक से पैसे निकालने में भी दिक्कत होती है। वह बैंक खाते से केवल 10 हजार रुपये महीना निकासी कर सकते हैं। सरकार की ओर से मिलने वाली मदद पिछले साल तक हर छह महीने में उन्हें मिल जाती थी लेकिन अब आठ महीने से उन्हें वह भी नहीं मिला है। 11वीं की छात्रा प्राची को रोजाना संघर्षों का सामना करना पड़ता है। वह कहती हैं कि यह अच्छा है कि मैंने खाना बनाना सीख लिया है, लेकिन जब हमें स्कूल जाने की जल्दी होती है, तो मेरा बड़ा भाई हमारे लिए नाश्ता तैयार करता है।


15 साल के हिमांशु पर अपने भाई बहनों को पढ़ाने की जिम्मेदारी


उन्होंने कहा, 'हालांकि, मैं कोशिश करती हूं कि मैं रात का खाना बनाऊं ताकि भाई की परेशानी कुछ कम हो सके। वह खेती के काम में भी शामिल है इसलिए उसके पास अपने लिए समय ही नहीं है। हालांकि, हिमांशु के लिए उम्मीद की एक किरण दिखाई दे रही है। शामली जिला प्रोबेशन अधिकारी अंशुल चौहान ने कहा कि अभी 10 दिन पहले राज्य सरकार ने कोविड अनाथ बच्चों के लिए बजट आवंटित किया था। सत्यापन की प्रक्रिया चल रही है और एक बार पूरा होने पर 4,000 रुपये का मासिक वजीफा तुरंत उनके खातों में भेज दिया जाएगा।

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कोरोना महामारी ने पिता, दादा-दादी और मां को भी छीन लिया

अनाथ भाई-बहनों का यह परिवार बिजली का बिल भरने में समर्थ नहीं है। 62 हजार का बिल भर पाना तो उनके लिए नामुमकिन ही है। प्रशासन की ओर से मिल रही मदद के बीच उन्हें बिजली विभाग से भी उम्मीद है कि वे उनकी मजबूरी समझेंगे। हालांकि, बकाया बिल के संबंध में बिजली विभाग की ओर से कोई आधिकारिक टिप्पणी अभी तक नहीं आई है।

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